Sunday, January 20, 2013

खोदा पहाड़ निकला चूहा








जब सिकंदर चाणक्य से मिलने आए तो चाणक्य राजकार्य कर रहे थे और एक दीपक जल रहा था, सिकंदर ने इंतज़ार किया, काम खत्म होने पर चाणक्य ने दीपक बुझा दिया और दूसरा दीपक जला लिया, सिकंदर को अजीब लगा, उसने कारण पूछा तो चाणक्य बोले, वो सरकारी काम था इसलिए सरकारी दीपक जल रहा था, तुम मुझसे मिलने आए हो अतः ये मेरा निजी मामला है इसके लिए सरकारी दीपक नहीं, मेरा अपना दीपक जलेगा|


जनता के लाखों रुपए उड़ाने के बाद काँग्रेस ने जयपुर चिंतन का निचोड़ निकाला है राहुल गांधी के रूप में| मुझे हंसी आ रही है, पहले क्या राहुल पराये थे या पहले वो कौनसे नंबर पर थे या कल से पहले सोनिया के बाद कुर्सी किसकी थी| 
महाभारत का वो प्रसंग याद आ गया जिसमें कृष्ण जी ने अपने रणछोड़ होने पर कहा था नामों में क्या धरा है, नाम तो पुकारने का एक साधन है| और बस, लोग मुझे चाहे जिस नाम से पुकारें परंतु जब मुझे ऐसा लगेगा कि पुकारने वाला मुझे पुकार रहा है तब मैं अवश्य बोलूँगा और रहूँगा मैं वही जो मैं हूँ|
इस देश को दस साल से चला रही पार्टी को चिंतन कि जरूरत है पर उस चिंतन को जनता को दिखाने की क्या ज़रूरत है क्योंकि जनता को तो देश के प्रधानमंत्री का नाम भी नहीं पता (जी हाँ, जो तथाकथित नाबालिग दिल्ली बलात्कार में गिरफ्तार हुआ है उसके परिवार में कोई मनमोहन जी को नहीं जानता), उस बेचारी जनता को क्या मतलब इस चिंतन से पर अफसोस, पैसा जनता का ही कुर्बान होना है| घरों में चाहे अंधेरा रहे पर चिंतन शिविर में चिराग रोशन रहने चाहिए, चाहे फिर इसके लिए हमें लोगों से छुट्टी के दिन ही काम क्यों न करवाना पड़े| और चिंतन भी किया तो क्या किया, खोदा पहाड़ निकला चूहा| 127 साल बाद 42 साल के राहुल गांधी को देश की पार्टी ने युवा मानकर उन्हें अपना तीसरा उपाध्यक्ष बनाया है, जिस पार्टी की अध्यक्ष पद की शोभा उनकी माँ बढ़ाती हैं और उन्हें ये पद जैसे विरासत में ही मिला है| 42 साल की उम्र में तो जनता अपने बुढ़ापे का प्रबंध करने लगती है, किस कोने में रह रहें ये युवा नेता| कहाँ थे ये युवा नेता जब राष्ट्रपति भवन के बाहर भीड़ ने लाठी खाई और आँसू बहाये|
आपसे एक बात कहना चाहूँगा और वो है मेरे दिल की ख़्वाहिश, भगवान करे राहुल गांधी कुवांरे ही रहें, कम से कम गांधी परिवार पर कहीं तो अल्प विराम लगे, अल्प इसलिए क्योंकि ये राजनीति है, यहाँ प्रियंका मतलब के लिए अपने बच्चों को भी चुनावी रैली के मंच पर ले आती हैं|
मैं कोई राजनीतिक चिंतक नहीं हूँ पर जनता कि कमाई को अपनी पार्टी के चिंतन के लिए उड़ाना कहाँ तक ठीक है? इससे देश का क्या भला हुआ? ये सब तो काँग्रेस ने अपने फायदे के लिए किया था| अगर आने वाले चुनावों की तैयारी ही करनी है तो कीजिये न अच्छे काम, कौन रोक रहा है, पर आपको तो 56 करोड़ के गुब्बारे को 1 रुपये में बेचने की आदत है ना| जिन प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति देश की भलाई के लिए की जाती है, उनसे सरकार अपने फायदे के काम करा रही है, बड़े गर्व की बात है| क्या सर्वोच्च अदालत को इस बात पर स्व-संज्ञान नहीं लेना चाहिए? सत्तारूढ़ दल को अपने फायदे के लिए जनता के पैसे का दुरुपयोग करने का क्या हक़ है, इस बात से जनता का क्या फादा हुआ कि राहुल पार्टी के नए उपाध्यक्ष होंगे? जनता का पैसा जनता के लिए काम नहीं आ रहा पर पार्टी उसे अगले चुनावों कि तैयारी के लिए जरूर इस्तेमाल कर रही है|
राहुल बाबा यूपी में मुंह की खा चुके हैं, गुजरात में कपड़े उतर गए, उत्तराखंड में बस नाक बच गयी| और इस राजकुमार पर पता नहीं काँग्रेस को कितना भरोसा है? इतना भरोसा तो शायद जनता को भी नहीं है, वरना चुनाव नहीं जिता देते ये महानुभाव अपने दम पर| राहुल ज़िम्मेदारी से भाग रहे हैं या वो कच्चे खिलाड़ी हैं ये तक देश को पता नहीं क्योंकि आज तक राहुल ने कोई पद स्वीकार नहीं किया है| पर काँग्रेस के नेता, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री भी यही कहते हैं कि राहुल जी अपनी ज़िम्मेदारी वक़्त आने पर खुद संभाल लेंगे, वो उनका अपना निजी फैसला होगा| प्रिय मनमोहन जी, मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ पर आप जैसे गुणवान व्यक्ति को आदर और चमचागिरी में फर्क नजर नहीं आता क्या? राहुल गांधी को काँग्रेस पिछले 9 साल से भविष्य के लिए तैयार कर रही है| ऐसा लग रहा है जैसे देश का राजा मर चुका है और रानी माँ मंत्रियों की मदद से शासन चला रहीं हैं और रानी माँ को लगता है कि पूरा देश अपने राजकुमार कि तरफ देख रहा हो कि कब वो युवा होकर तैयार होगा और गद्दी संभालेगा| लोकतन्त्र है कि राजतंत्र???
और सोनिया जी अपने मन में मानकर बैठीं हैं कि सभी राहुल को एकमत से अपना नेता मान लेंगें पर वो भूल रही हैं कि राहुल और राजीव में जमीन आसमान का अंतर है| राहुल पर तो  जनता ने भी आज तक अपना पूरा भरोसा नहीं दिखाया है| भारत में रैलियों की भीड़ से आप वोटों का आंकड़ा नहीं लगा सकते क्योंकि यहाँ के तो माँ बाप भी बच्चों को स्कूल बस इसलिए भेजते हैं कि एक वक़्त का खाना मिल जाये| और जिस तरह से बीते दस सालों में हमारा देश जवान हो रहा है वैसे वैसे ही राहुल बूढ़े होते जा रहे हैं|
प्रिय काँग्रेस, जागिए, क्योंकि जिस दिन सोशल मीडिया वाला आम आदमी और खास कर युवा (जिसने आज तक वोट नहीं दिया) वोट देगा उस दिन आपको जमानत भरना भी भारी प सकता है| लोकतन्त्र में राजतंत्र की समाप्ति की शुरुआत होने ही वाली है और यही शायद लोकतन्त्र की सच्ची जीत होगी|

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